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पंचतत्व कविता

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 पंचतत्व  अनादी अनंत आद्य अविनाशा  निर्विघ्न तोही विधाता माझ्या नित्य व्यक्त सर्व साक्षी सर्व  कर्ता  ज्ञानमय आनंत  स्वंयप्रकाशी सर्वव्यापक  कर्म    ;   धर्म  ;   विधी  ;    विखो ; परित्यजौनि   परमेश्वरास शरन रिगाओ   धन  ,  मोह   ,    आप्त्ताचे प्रेम ,   सर्वसंग परित्याग समाधान पावो  विवेक युक्त भावरूप अविस्मरणीय ठरावे   श्री दत्त दत्त  , स्मृती रूपाने रंगवावे   श्री गोविंद प्रभू मूर्ती पासौनि प्रकाशू   गगनवात्सल्य अंतरी गर्भ पतीत दवंडने    कडकडीत विरागी , अमृत्यू  नैष्ठिक   सर्वभूती सम दृष्टी , अवतार चक्रधारी  गरुडगामी मधुसूदना चक्रेश्वरा   विश्वबाहू   चक्रपाणी  सृष्टीपालीणी  तोची केशवा यशोदेच्या लल्ला   अनंत रूपाय सहस्रजित  रुपेश्वराय   इह एक पद द्वी पद  ब्रम्हांड सारा   पंच अवतारी , पंचतत्व सदा सुखदा   राजेश मेकेवाड